नाग तिब्बा ट्रेक उत्तराखंड का एक फेमस ट्रैक है जोकि देहरादून से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह ट्रेक उत्तराखंड के गढ़वाल छेत्र मैं आता हैआजकल जिस तरह से युवा वर्ग का ट्रेक में अत्यधिक रुझान बढ़ गया है
इस तरह के ट्रैक अब उभर कर सामने आने लगे हैं, उत्तराखंड तो वैसे भी आपकी सुंदरता के लिए और अपने पहाड़ी रास्तों के लिए शुरुआत से ही फेमस रहा है
इस तरह से ऐसे ट्रैक उत्तराखंड की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं हमें नाग तिब्बा ट्रक के बारे में हमारे मित्र दीपक घुघत्याल जी के द्वारा पता चला फिर हमने निर्णय लिया नाग तिब्बा ट्रेक में जाने का जिसमें हमारे साथ हमारी एक महिला मित्र दीपू अधिकारी उनके भाई भरत सिंह अधिकारी और दीपक सिंह घुघत्याल शामिल हुए हमारी यात्रा जिम कॉर्बेट से प्रारंभ हुई प्रथम चरण मैं हम जिम कॉर्बेट से देहरादून पहुंचे फिर देहरादून से मसूरी केम्प्टी फॉल होते हुए नैनबाग पहुंचे.
नैनबाग से एक रास्ता यमुनोत्री को जाता है और दूसरा नाग तिब्बा ट्रैक की तरफ ट्रैक में जाने के लिए हमें पंतवारी गांव पहुंचना था ट्रैक की पैदल यात्रा पंतवारी गांव से ही प्रारंभ होती है पंतवारी से नाग तिब्बा ट्रैक की दूरी 12 किलोमीटर की है जोकि लगभग खड़ी चढ़ाई जैसी है नाग तिब्बा ट्रक में हरियाली ऊंचे ऊंचे पहाड़ और बर्फ से भरी हुई पहाड़ियां के दर्शन आसानी से हो जाते हैं यह एक शिवालिक क्षेत्र जो सामान्यत बर्फ से ढका रहता है यहां का पहला पड़ाव 6 किलोमीटर दूर स्थित गोट विलेज है यह विलेज (NIM) के संस्थापक और केदारनाथ त्रासदी के समय केदारनाथ को पुनः स्थापित करने वाले श्री कर्नल कोठियाल जी की संस्था के द्वारा गोद लिया गया है
इसके पूरे रखरखाव का जिम्मा कर्नल कोठियाल जी की टीम का है एक रात यहां विश्राम करने के बाद आप आगे की चढ़ाई चढ़ाई आरंभ कर सकते हैं आगे की चढ़ाई थोड़ी मुश्किल होती है क्योंकि हो थोड़ी सी खड़ी चढ़ाई है लेकिन इन रास्तों में आपको पुदीना की भीनी भीनी सी खुशबू मिलती रहेगी क्योंकि आगे चलकर आप पुदीने के पहाड़ों में पहुंच जाएंगे जो यहां पर एयर फ्रेशनर का काम करता है और आपके शरीर को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है चढ़ाई के रास्ते कठिन तो है लेकिन पर यहां पर आपके विश्राम के लिए घास के बुग्याल की तरह मैदान उपलब्ध है जहां पर आप अपनी थकान आप आसानी से मिटा सकते हैं
हम लोग सीधे पंत गाड़ी से नाग तिब्बा के लिए चल पड़े थे ना ही हमने गोट विलेज में विश्राम लिया और ना ही नाग तिब्बा इसका कारण यह था कि हमारे मित्र के पास पर्याप्त समय नहीं था हमें बहुत कम समय में जो यात्रा पूरी करनी थी फिर 12 किलोमीटर चलने के बाद हम नाग तिब्बा पहुंच गए थे जोकि नाग देवता का मंदिर है और वहां पर काफी फेमस बुग्याल बना हुआ है जो रात्रि विश्राम के लिए एक उचित जगह है लेकिन यहां पर आने के लिए आपको अपने संग टेंट कैरी करने पड़ेंगे क्योंकि आप विश्राम की कोई उचित व्यवस्था नहीं है लेकिन हमारा लक्ष्य तो कुछ और ही था रात घनी हो रही थी अंधेरा बढ़ता जा रहा था और हमारा लक्ष्य था नाग तिब्बा के ऊपर झंडी हमारे पास दो टेंट थे हमने खाना नीचे से ही पैक करा लिया था और कुछ सामग्री और बर्तन हमारे पास उपलब्ध थे हमने रात के 7:00 बजे नाग तिब्बा से झंडी की ओर चलना आरंभ किया झंड़ी वहां से कम से कम 5 किलोमीटर की दूरी में था और एकदम खड़ी चढ़ाई हमारे पास दो टेंट 1 बेस लाइट 7 हेड लाइट और एक बड़ी लाइट थीं
हैंड लाइट जो की रोशनी के लिए पर्याप्त थी इस रोशनी की बदौलत और सहायता से हम ऊपर की चढ़ाई चढ़ने लगे अंधेरा अधिक होने के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था हमें लग रहा था कि हम रास्ता भटक रहे हैं लेकिन हम ऊपर को चलते जा रहे थे हमें यहाँ के जंगल की ज्यादा जानकारी तो नहीं थी कि वहां कौन-कौन से जानवर अमूमन पाए जाते हैं
लेकिन हमारे अंदर तो जुनून था की आज की रात झंडी में ही स्टे करना है रात के करीब 9:00 बजे हम लोग टॉप पर पहुंच गए पर हमारे ख्याल से वो स्थान झंडी नहीं था अंधेरा बहुत हो गया था नीचे जाना कोई समाधान नहीं था इसलिए हमने उस जगह पर अपने टेंट लगा दिए यह जगह काफी ऊंचाई में थी और पेड़ों की अधिकता यहां पर ज्यादा थी जिस कारण अंधेरी रात अपने उफान पर थी और रात का अंधेरा इतना घना था कि जो एकदम डराने वाला था इस कारण सबसे पहले हमने लकड़ियों की व्यवस्था जुटाना चालू कर दिया जिसमें दीपक सिंह घुघत्याल भरत सिंह अधिकारी और मैं स्वयं जंगल से मोटी मोटी लकड़िया ले आए और उन्हें एक जगह में रखना प्रारम्भ कर दिया जहां पर हमने टेंट लगाने का निर्णय करा था उसके दोनों और लेफ्ट एंड राइट साइड में हमने लकड़ी के बड़े बड़े अम्बार लगाने शुरू करें फिर रोशनी और डर को खत्म करने के लिए हमने उन्हें जालाना आरम्भ कर दिया फिर उसके बाद हम लोग अपनी भोजन व्यवस्था में जुड़ गए हमारे पास 6 किलो पनीर था जिसे हमने बनाना प्रारंभ किया और कुछ चावल मित्र दीपू अधिकारी की सहायता से हम आधे घंटे के अंदर खाना बनाने में सफल हो गए फिर एक टेंट को हमने लगेज के रूप में इस्तेमाल किया जिससे कि हमारा बैंग वा हमारे अतिरिक्त कपड़े गीले ना हो हमने अपने टेंट को दोनों आग के बीच में सेट किया और उसके अंदर 4 स्लीपिंग बैग 4 मेटर्स लगाई बाहर काफी ठंडा था लेकिन हमारे पास DECATHLON ब्रांड का टेंपरेचर मेंटेन करने वाला टेंट था जिसके बाहर काफी ठंडा था और उसके अंदर हमें ठंड का ज्यादा एहसास नहीं हो रहा था इसका एक कारण यह भी था कि हम चार लोग एक ही टेंट में थे हमने सोने से ही पहले आग में पानी डाल दिया था जिससे कि वह आग जंगल को कोई नुकसान ना पहुंचाएं
थोड़ी देर में बातें करते करते हम सब को नींद भी आ गई सुबह 4:00 बजे हमारी नींद खुल गई थी जब हमने बाहर जाकर देखा तो हमारा पूरा टेंट बारिश से भीगा हुआ था मगर हमें अंदर बिल्कुल भी बारिश का एहसास नहीं हुआ शायद रात से ही बारिश होने लग गई थी रात में बारिश के कारण आग पूरी तरह से बूझ चुकी थी रात भर बारिश होने से धीरे-धीरे कोहरा पड़ने लगा था जिस कारण मौसम खराब होता जा रहा था दीपक और में टेंट से बाहर निकले और चारों ओर जंगल को निहारने लगे थोड़ा आगे बढ़कर हमने पाया कि हम झंडी के नजदीक ही नहीं थे बल्कि झंड़ी के टॉप पर थे
जहां पर 3 4 झंडे लगे थे जो कि उस जगह को वहां पर की सारी चोटियों में से सबसे ऊंची चोटी बनाते थे वहां हमने कुछ फोटो खिंचाई फिर हमने उतारना शूरू कर दिया.
नीचे मंदिर में पुजारी बैठते हैं जिनकी घंटी की आवाज से हमें नीचे उतरने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि वह घंटियां हमें रास्ता बता रही थी उस रात ऊपर रहने वाले हम चार लोग थे हम सभी के लिए यह ट्रेक एक शानदार ट्रेक था यह ट्रैक कुछ हद तक मुश्किल भरा था लेकिन यहां की खूबसूरती हर समय हमारी थकान को घटाएं जा रही थी और बीच बीच में रुकते फोटो खींचना हमारे रोमांचक को बड़ा ही रहा था धीरे-धीरे नीचे उतरने के बाद हम लोग पंत वाड़ी पहुंच चुके थे पंत वाडी से नैनबाग को हमने नाश्ते के लिए उचित जगह के रूप में चुना यहां से यमुनोत्री कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर था फिर अगला निर्णय हमने यमुनोत्री जाने का लिया
शाम के 5:00 बजे हम लोग यमुनोत्री पहुंच चुके थे यमुनोत्री की पहाड़ियां बर्फ से ढकी हुई थी और हम का ट्रैक के कारण काफी थके हुए थे हमने यमुनोत्री में एक होटल में कमरा किराए पर लिया और रात्रि में विश्राम के बाद सुबह सुबह हम यमुनोत्री दर्शन के लिए निकल गए हमारे दो साथी यमुनोत्री के ऊपर ट्रैक पर चल दिए यमुनोत्री जो कि उत्तराखंड का एक पवित्र धाम में से एक हैं
वहां पर पानी के गर्म और ठंडे पानी के स्रोत है जिनमें स्नान करने के बाद आपके शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है गरम स्रोत में स्नान करने के बाद हम लोग अपने रूम में वापस आ गए रात्रि में बाजार घूमने के बाद वह कुछ शॉपिंग करने के बाद हम लोगों ने फिर से यमुनोत्री धाम में रात्रि विश्राम का निर्णय लिया अगली सुबह 10:00 बजे हमने देहरादून के रास्ते अपने घर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जाने का निर्णय लिया और इस तरह हमारा नाग तिब्बा ट्रेक और यमुनोत्री धाम की यात्रा संपन्न हुई
इस तरह के ट्रैक अब उभर कर सामने आने लगे हैं, उत्तराखंड तो वैसे भी आपकी सुंदरता के लिए और अपने पहाड़ी रास्तों के लिए शुरुआत से ही फेमस रहा है
इस तरह से ऐसे ट्रैक उत्तराखंड की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं हमें नाग तिब्बा ट्रक के बारे में हमारे मित्र दीपक घुघत्याल जी के द्वारा पता चला फिर हमने निर्णय लिया नाग तिब्बा ट्रेक में जाने का जिसमें हमारे साथ हमारी एक महिला मित्र दीपू अधिकारी उनके भाई भरत सिंह अधिकारी और दीपक सिंह घुघत्याल शामिल हुए हमारी यात्रा जिम कॉर्बेट से प्रारंभ हुई प्रथम चरण मैं हम जिम कॉर्बेट से देहरादून पहुंचे फिर देहरादून से मसूरी केम्प्टी फॉल होते हुए नैनबाग पहुंचे.
नैनबाग से एक रास्ता यमुनोत्री को जाता है और दूसरा नाग तिब्बा ट्रैक की तरफ ट्रैक में जाने के लिए हमें पंतवारी गांव पहुंचना था ट्रैक की पैदल यात्रा पंतवारी गांव से ही प्रारंभ होती है पंतवारी से नाग तिब्बा ट्रैक की दूरी 12 किलोमीटर की है जोकि लगभग खड़ी चढ़ाई जैसी है नाग तिब्बा ट्रक में हरियाली ऊंचे ऊंचे पहाड़ और बर्फ से भरी हुई पहाड़ियां के दर्शन आसानी से हो जाते हैं यह एक शिवालिक क्षेत्र जो सामान्यत बर्फ से ढका रहता है यहां का पहला पड़ाव 6 किलोमीटर दूर स्थित गोट विलेज है यह विलेज (NIM) के संस्थापक और केदारनाथ त्रासदी के समय केदारनाथ को पुनः स्थापित करने वाले श्री कर्नल कोठियाल जी की संस्था के द्वारा गोद लिया गया है
इसके पूरे रखरखाव का जिम्मा कर्नल कोठियाल जी की टीम का है एक रात यहां विश्राम करने के बाद आप आगे की चढ़ाई चढ़ाई आरंभ कर सकते हैं आगे की चढ़ाई थोड़ी मुश्किल होती है क्योंकि हो थोड़ी सी खड़ी चढ़ाई है लेकिन इन रास्तों में आपको पुदीना की भीनी भीनी सी खुशबू मिलती रहेगी क्योंकि आगे चलकर आप पुदीने के पहाड़ों में पहुंच जाएंगे जो यहां पर एयर फ्रेशनर का काम करता है और आपके शरीर को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है चढ़ाई के रास्ते कठिन तो है लेकिन पर यहां पर आपके विश्राम के लिए घास के बुग्याल की तरह मैदान उपलब्ध है जहां पर आप अपनी थकान आप आसानी से मिटा सकते हैं
हम लोग सीधे पंत गाड़ी से नाग तिब्बा के लिए चल पड़े थे ना ही हमने गोट विलेज में विश्राम लिया और ना ही नाग तिब्बा इसका कारण यह था कि हमारे मित्र के पास पर्याप्त समय नहीं था हमें बहुत कम समय में जो यात्रा पूरी करनी थी फिर 12 किलोमीटर चलने के बाद हम नाग तिब्बा पहुंच गए थे जोकि नाग देवता का मंदिर है और वहां पर काफी फेमस बुग्याल बना हुआ है जो रात्रि विश्राम के लिए एक उचित जगह है लेकिन यहां पर आने के लिए आपको अपने संग टेंट कैरी करने पड़ेंगे क्योंकि आप विश्राम की कोई उचित व्यवस्था नहीं है लेकिन हमारा लक्ष्य तो कुछ और ही था रात घनी हो रही थी अंधेरा बढ़ता जा रहा था और हमारा लक्ष्य था नाग तिब्बा के ऊपर झंडी हमारे पास दो टेंट थे हमने खाना नीचे से ही पैक करा लिया था और कुछ सामग्री और बर्तन हमारे पास उपलब्ध थे हमने रात के 7:00 बजे नाग तिब्बा से झंडी की ओर चलना आरंभ किया झंड़ी वहां से कम से कम 5 किलोमीटर की दूरी में था और एकदम खड़ी चढ़ाई हमारे पास दो टेंट 1 बेस लाइट 7 हेड लाइट और एक बड़ी लाइट थीं
हैंड लाइट जो की रोशनी के लिए पर्याप्त थी इस रोशनी की बदौलत और सहायता से हम ऊपर की चढ़ाई चढ़ने लगे अंधेरा अधिक होने के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था हमें लग रहा था कि हम रास्ता भटक रहे हैं लेकिन हम ऊपर को चलते जा रहे थे हमें यहाँ के जंगल की ज्यादा जानकारी तो नहीं थी कि वहां कौन-कौन से जानवर अमूमन पाए जाते हैं
लेकिन हमारे अंदर तो जुनून था की आज की रात झंडी में ही स्टे करना है रात के करीब 9:00 बजे हम लोग टॉप पर पहुंच गए पर हमारे ख्याल से वो स्थान झंडी नहीं था अंधेरा बहुत हो गया था नीचे जाना कोई समाधान नहीं था इसलिए हमने उस जगह पर अपने टेंट लगा दिए यह जगह काफी ऊंचाई में थी और पेड़ों की अधिकता यहां पर ज्यादा थी जिस कारण अंधेरी रात अपने उफान पर थी और रात का अंधेरा इतना घना था कि जो एकदम डराने वाला था इस कारण सबसे पहले हमने लकड़ियों की व्यवस्था जुटाना चालू कर दिया जिसमें दीपक सिंह घुघत्याल भरत सिंह अधिकारी और मैं स्वयं जंगल से मोटी मोटी लकड़िया ले आए और उन्हें एक जगह में रखना प्रारम्भ कर दिया जहां पर हमने टेंट लगाने का निर्णय करा था उसके दोनों और लेफ्ट एंड राइट साइड में हमने लकड़ी के बड़े बड़े अम्बार लगाने शुरू करें फिर रोशनी और डर को खत्म करने के लिए हमने उन्हें जालाना आरम्भ कर दिया फिर उसके बाद हम लोग अपनी भोजन व्यवस्था में जुड़ गए हमारे पास 6 किलो पनीर था जिसे हमने बनाना प्रारंभ किया और कुछ चावल मित्र दीपू अधिकारी की सहायता से हम आधे घंटे के अंदर खाना बनाने में सफल हो गए फिर एक टेंट को हमने लगेज के रूप में इस्तेमाल किया जिससे कि हमारा बैंग वा हमारे अतिरिक्त कपड़े गीले ना हो हमने अपने टेंट को दोनों आग के बीच में सेट किया और उसके अंदर 4 स्लीपिंग बैग 4 मेटर्स लगाई बाहर काफी ठंडा था लेकिन हमारे पास DECATHLON ब्रांड का टेंपरेचर मेंटेन करने वाला टेंट था जिसके बाहर काफी ठंडा था और उसके अंदर हमें ठंड का ज्यादा एहसास नहीं हो रहा था इसका एक कारण यह भी था कि हम चार लोग एक ही टेंट में थे हमने सोने से ही पहले आग में पानी डाल दिया था जिससे कि वह आग जंगल को कोई नुकसान ना पहुंचाएं
थोड़ी देर में बातें करते करते हम सब को नींद भी आ गई सुबह 4:00 बजे हमारी नींद खुल गई थी जब हमने बाहर जाकर देखा तो हमारा पूरा टेंट बारिश से भीगा हुआ था मगर हमें अंदर बिल्कुल भी बारिश का एहसास नहीं हुआ शायद रात से ही बारिश होने लग गई थी रात में बारिश के कारण आग पूरी तरह से बूझ चुकी थी रात भर बारिश होने से धीरे-धीरे कोहरा पड़ने लगा था जिस कारण मौसम खराब होता जा रहा था दीपक और में टेंट से बाहर निकले और चारों ओर जंगल को निहारने लगे थोड़ा आगे बढ़कर हमने पाया कि हम झंडी के नजदीक ही नहीं थे बल्कि झंड़ी के टॉप पर थे
जहां पर 3 4 झंडे लगे थे जो कि उस जगह को वहां पर की सारी चोटियों में से सबसे ऊंची चोटी बनाते थे वहां हमने कुछ फोटो खिंचाई फिर हमने उतारना शूरू कर दिया.
नीचे मंदिर में पुजारी बैठते हैं जिनकी घंटी की आवाज से हमें नीचे उतरने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि वह घंटियां हमें रास्ता बता रही थी उस रात ऊपर रहने वाले हम चार लोग थे हम सभी के लिए यह ट्रेक एक शानदार ट्रेक था यह ट्रैक कुछ हद तक मुश्किल भरा था लेकिन यहां की खूबसूरती हर समय हमारी थकान को घटाएं जा रही थी और बीच बीच में रुकते फोटो खींचना हमारे रोमांचक को बड़ा ही रहा था धीरे-धीरे नीचे उतरने के बाद हम लोग पंत वाड़ी पहुंच चुके थे पंत वाडी से नैनबाग को हमने नाश्ते के लिए उचित जगह के रूप में चुना यहां से यमुनोत्री कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर था फिर अगला निर्णय हमने यमुनोत्री जाने का लिया
शाम के 5:00 बजे हम लोग यमुनोत्री पहुंच चुके थे यमुनोत्री की पहाड़ियां बर्फ से ढकी हुई थी और हम का ट्रैक के कारण काफी थके हुए थे हमने यमुनोत्री में एक होटल में कमरा किराए पर लिया और रात्रि में विश्राम के बाद सुबह सुबह हम यमुनोत्री दर्शन के लिए निकल गए हमारे दो साथी यमुनोत्री के ऊपर ट्रैक पर चल दिए यमुनोत्री जो कि उत्तराखंड का एक पवित्र धाम में से एक हैं
वहां पर पानी के गर्म और ठंडे पानी के स्रोत है जिनमें स्नान करने के बाद आपके शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है गरम स्रोत में स्नान करने के बाद हम लोग अपने रूम में वापस आ गए रात्रि में बाजार घूमने के बाद वह कुछ शॉपिंग करने के बाद हम लोगों ने फिर से यमुनोत्री धाम में रात्रि विश्राम का निर्णय लिया अगली सुबह 10:00 बजे हमने देहरादून के रास्ते अपने घर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जाने का निर्णय लिया और इस तरह हमारा नाग तिब्बा ट्रेक और यमुनोत्री धाम की यात्रा संपन्न हुई